उद्यान विभाग कोटद्वार का बड़ा कारनामा

 उद्यान विभाग कोटद्वार का बड़ा कारनामा 

भ्रष्टाचार की आ रही बू उच्च अधिकारियों के कानों में नहीं रेंगी तब भी जूं

सांठ गांठ की है क्या बात

हद है ....... और कब तक .......... ?

काश्तकारों के हितों की योजनाओं के साथ आखिर मजाक क्यों ....

जवाब देना होगा ........ ? 

लोक संवाद टुडे स्पेशल : "जय जवान जय किसान" ये नारा आपने अक्सर सुना ही होगा। अगर नहीं सुना तो चलो आपको बता दें की यह नारा सबसे पहले १९६५ के भारत पाक युद्ध के दौरान भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिया था। इसे भारत का राष्ट्रीय नारा भी कहा जाता हैं जो जवान एवं किसान के श्रम को दर्शाता है। लेकिन अभी हम बात कर रहें हैं किसानों की।    नारें से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है किसानों की श्रम की बात हो रही है यानी कि उसके द्वारा की जा रही मेहनत की। जिससे किसान अपनी आजीविका मजबूत कर सशक्त बन सके। उधर तब से लेकर अब तक तमाम सरकारें चाहे केन्द्र की हो या फिर राज्य की निरंतर प्रयास कर रही हैं कि देश का हर किसान किसी भी हाल में सशक्त हो सके, मजबूत हो सके। इसी के मद्देनजर सरकारों द्वारा तमाम योजनाओं को भी धरातल पर उतारा गया है और लगातार उतारी भी जा रही हैं, लेकिन जब इन्हीं योजनाओं पर निजी हित को लेकर डाका डलने लगे तो क्या वाकई में धरातल पर ये सारी योजनाएं परवान चढ़ पाएंगी।

कतई भी नहीं और कहा भी नहीं जा सकता।

ऐसा ही एक मामला देखने को मिला उद्यान विभाग के उद्यान विशेषज्ञ कार्यालय कोटद्वार में। 

मामला तब सामने आया जब सूचना अधिकार अधिनियम के तहत विभाग से किसानों के हितों को लेकर आयोजित इन तमाम योजनाओं से संबंधित सूचना ली गई। इन सूचनाओं में जो सामने आया यह सुनकर आप खुद हैरत में पड़ जाएंगे कि आखिर किस तरह एक निजी फर्म को लाभ पहुंचाने को लेकर विभागीय उच्च अधिकारी व कुछ कर्मचारियों ने मिलकर सारे नियम कायदों का धत्ता बनाते हुए ताना बाना बुना। इस पूरे प्रकरण में विभागीय उच्च अधिकारी और निजी फर्म के बीच आपसी सांठ गांठ है या फिर नहीं .......?  

ये तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इस पूरे प्रकरण ने विभागीय कार्यप्रणाली की पोल खोल कर रख दी है।



यह है पूरा मामला - 

"कार्यालय उद्यान विशेषज्ञ कोटद्वार गढ़वाल" द्वारा दिनांक 7 मई 2018 को RKVY योजनाओं के अंतर्गत उच्च गुणवत्ता युक्त पुष्प ग्लेडियोलस बल्बों की निम्न प्रजातियां White Prosperity, Rose Supreme, Nova lux, Advance, Oscar, Rose Bee (बल्ब साइज 8/10 cm. अनिवार्य) की मांग for प्रति बल्ब निर्धारित दरें क्रमशः (१) -  मै o उत्तराखंड सिड्स कार्पोरेशन डिग्री कॉलेज रोड़, कोटद्वार (२) - मै o सिद्धबली इंटर प्राइजेज नींबू चौड़ कोटद्वार (३) - मै o गढ़वाल एग्री सप्लायर शिबू नगर तड़ियाल चौक कोटद्वार से कि गयी। निम्न फर्मों से दर देने की अंतिम तिथि 22 मई 2018 रखा गया।


 

इस क्रम में क्रमशः  मै o उत्तराखंड सिड्स कार्पोरेशन डिग्री कॉलेज रोड़, कोटद्वार ने दिनांक 14 मई 2018 को, मै o सिद्धबली इंटर प्राइजेज नियर के प्राइड माॅल, तड़ियाल चौक, शिबू नगर कोटद्वार ने 12 मई 2018 को और मै o गढ़वाल एग्री सप्लायर नींबू चौड़ चौक कोटद्वार ने 10 मई 2018 को ग्लेडियोलस बल्ब प्रजाति Advance, Rose Supreme, Rose Bee के प्रति बल्ब की दरों का विवरण विभाग को दिया गया। इसमें जो गौर करने वाली बात देखने को मिली तो एक फर्म द्वारा तो जीएसटी नंबर व पेन नंबर फर्म द्वारा दिया गया है जबकि अन्य दो फर्मों के दर विवरण पत्र में जीएसटी व पेन नंबर कहीं अंकित नहीं किया गया है, और सबसे दिलचस्प बात जो देखने को मिली की ग्लेडियोलस आपूर्ति को लेकर दिए गए विभागीय पत्र में जो पता निम्न फर्म मै o सिद्धबली इंटर प्राइजेज और मै o गढ़वाल एग्री सप्लायर फर्म से सम्बन्धित दिया गया है लेकिन जब फर्मों द्वारा दर विवरण का जवाब विभाग को आया तो निम्न दोनों फर्मों के पते में बड़ा बदलाव देखने को मिला। यानी कि इधर का उधर उधर का इधर। अब इसे विभागीय गलती कहें या फर्म की या फिर कुछ और .......? 



सवाल का उठना तो लाजमी है। यदि इस प्रकरण में विभागीय गलती मानी जाए तो फिर उक्त दोनों फर्मों से विवरण दर का जवाब कैसे आया। ये सोचने वाला विषय है..... ? यदि फर्म की गलती कहें तो फिर सवाल और भी बड़ा हो जाता है क्योंकि इन दोनों ही फर्मों के दर विवरण पत्र में जीएसटी व पेन नंबर कहीं अंकित नहीं किया गया है और यदि मामला सेटिंग गेटिंग का कहें तो फिर कुछ नहीं कहा जा सकता। 



अभी तो बात महज प्रक्रिया की हो रही है उच्च गुणवत्ता युक्त पुष्प ग्लेडियोलस बल्ब की नहीं ......? 



हालांकि जो भी हो विभाग ने प्रक्रिया पूरी करते हुए दरों का तुलनात्मक विवरण करते हुए व्यक्तिगत और संयुक्त रूप से समाधान निकालते हुए  मै o उत्तराखंड सिड्स कार्पोरेशन डिग्री कॉलेज रोड़, कोटद्वार को संस्तुति दे दी।



जिसमें विभागीय एक उद्यान पर्यवेक्षक, व. प्र. अ. मुख्यालय और उद्यान विशेषज्ञ कोटद्वार शामिल रहे। विभाग ने 14, 15 व 15 मई 2018 की दिनांको में इस मामले में अपनी स्वीकृति प्रदान की। जबकि व्यक्तिगत और संयुक्त रूप से इस प्रक्रिया का समाधान किस तिथि को हुआ इसकी कोई जानकारी पत्र में उपलब्ध नहीं है। वरन् बाद में कुल देय राशि 39,998 (उंचालिस हजार नौ सौ अठानवे रुपए) का भुगतान भी विभाग द्वारा उक्त फर्म को दिनांक 15 जून 2018 में कर दिया गया।



 अब बात करते हैं ग्लेडियोलस बल्ब की उच्च गुणवत्ता व प्रजाति की तो विभाग ने उक्त फर्म से ग्लेडियोलस बल्ब की खरीद तो कर ली लेकिन क्या फर्म द्वारा उक्त ग्लेडियोलस बल्ब की उच्च गुणवत्ता व प्रजाति से संबंधित कोई साक्ष्य विभाग को दिए गए की फर्म ने ग्लेडियोलस बल्ब प्रजाति वार कहां से खरीदा और क्या 



ग्लेडियोलस बल्ब उच्च गुणवत्ता व प्रजाति में सही थे। यदि फर्म द्वारा साक्ष्य विभाग को दिए गए तो चयन समिति ने चयन से पूर्व या बाद में क्या उक्त प्रजाति के ग्लेडियोलस बल्बों की जांच या परीक्षण करवाया जिससे यह पता लग सके कि ग्लेडियोलस बल्ब की खरीद में मानक सही हैं या गलत। 



यदि चयन समिति द्वारा इस पूरी प्रक्रिया में ग्लेडियोलस बल्बों की खरीद में तुलनात्मक विवरण महज दरों के हिसाब से ही किया गया है तो फिर ऐसे में सवाल आखिर ग्लेडियोलस बल्ब के उच्च गुणवत्ता व प्रजाति पर भी उठते हैं।



 उधर इस पूरे मामले में अब तक की सबसे ज्यादा हैरत करने वाली बात यह है कि विभाग ने ग्लेडियोलस बल्ब की खरीद को लेकर जिस फर्म ( मै o उत्तराखंड सिड्स कार्पोरेशन डिग्री कॉलेज रोड़, कोटद्वार ) को स्वीकृति दी सूत्रों से पता लगा है कि उक्त फर्म विभाग के ही डीएचओ कोटद्वार कार्यालय उद्यान विभाग कर्मचारी के रिश्तेदारों के नाम पर दर्ज है और इतना ही नहीं विभागीय ग्लेडियोलस बल्ब की खरीद को लेकर बनी चयन समिति में उद्यान विभाग के ए और बी ग्रेड के अधिकारी शामिल होते हैं लेकिन इस प्रकरण मे मिलीभगत के कारण पर्यवेक्षक स्तर के कर्मचारी को  शामिल लिया गया। ऐसा होना संदेहास्पद की स्थिति को खड़ा करता है। 



अब बड़ा सवाल यही खड़ा होता है कि क्या इस पूरे प्रकरण में विभाग इस बात से अनजान था या फिर 

विभागीय अधिकारी व कर्मचारी की मिलीभगत के चलते ही उक्त फर्म को लाभ पहुंचाया गया है। 




क्या कहा जा सकता है। लेकिन हां इतना जरूर कहेंगे की यह पूरा प्रकरण विभागीय कार्य प्रणाली को निरंतर सवालों के कटघरे में खड़ा करता नजर आ रहा है। 





आपको बता दें कि केन्द्र व प्रदेश दोनों ही सरकारें निरंतर राज्य के काश्तकारों को सशक्त बनाने को लेकर तमाम योजनाएं उद्यान विभाग और कृषि विभाग के जरिए धरातल पर उतार रही है। ताकि काश्तकारों की आय को दोगुना करने का प्रयास किया जा सके साथ ही काश्तकार इन योजनाओं का लाभ उठाते हुए आर्थिक मजबूत बन सकें। इसी के तहत राज्य का उद्यान विभाग भी स्लोगन "औद्यानिकी बढ़ाएं, खुशहाली लाए" के जरिए किसानों कि आर्थिकी को मजबूत करने को लेकर तमाम स्कीमों के जरिए कोशिस कर रहा है, लेकिन जब काश्तकारों को लाभ पहुंचाने वाली इन स्कीमों में ही  विभागीय अधिकारी, कुछ कर्मचारी और निजी फर्म के मिलीभगत के चलते डाका पड़ने लगे या यूं कहें घालमेल होने लगे तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है की धरातल पर ये सारी योजनाएं आखिर किस तरह परवान चड़ पाएंगी और कैसें काश्तकार इन योजनाओं के लाभ से अपनी आजीविका को दुरस्त कर पाएंगे। क्योंकि अमूमन देखा गया है कि अक्सर सेटिंग - गेटिंग के खेल में गुणवत्ता पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लग जाता है और जब गुणवत्ता ही सही नहीं होगी तो कैसे मान लें काश्तकारों को योजनाओं से फायदा पहुंचेगा और कैसे काश्तकारों की आर्थिकी दुरस्त हो सकेगी।



यह एक चिंतनीय विषय है.......? और सवाल का उठना भी लाजमी। उद्यान विभाग के मंत्री,मंत्रालय और उच्चाधिकारियों को इस प्रकरण का गंभीरतापूर्वक संज्ञान लेते हुए कोटद्वार के डीएचओ कार्यालय के अधिकारियों और कर्मचारियों का खुलासा करना होगा जो किसानों के हकहकूकों से खिलवाड़ कर रहे हैं तथा विभाग को बदनामी की कगार पर खडा कर रहे हैं व निस्वार्थ कर्मचारियों को हतोत्साहित कर रहे हैं।



लोक संवाद टुडे की टीम का प्रयास है कि सूचना के अधिकार से ली गई जानकारियों से भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों से सरकार की आंखों के परदे को हटाया जा सके।

Post a Comment

0 Comments