राज्य सरकार ने बनाया पुलिस कांस्टेबलों को बधुआ मजदूर

 उत्तराखंड पुलिस के कांस्टेबल जवानों का उत्पीड़न

20 वर्ष की सेवा करने के उपरांत भी एक बार भी नहीं मिला प्रमोशन और ग्रेड पर

राज्य सरकार ने बनाया पुलिस कांस्टेबलों को बधुआ मजदूर

पुलिस के उच्चाधिकारी भी अपने जवानों की नहीं ले रहे शुद्ध

कानून व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी का हो रहा मानसिक उत्पीड़न

गौरतलब है कि राज्य बने हुए 20 वर्ष गुजर चुके हैं और उत्तराखंड सरकार ने इन 20 वर्षों में कानून व्यवस्था की रीढ कही जाने वाली पुलिस महकमे की आज तक अपनी कोई नियमावली तक नहीं बनाई है। किसी भी देश राज्य की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी है। केंद्र सरकार की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी बाहर भीतर सेना,पैरा मिलिट्री फोर्स और केंद्रीय पुलिस बल देखते हैं, जबकि राज्य सरकारों की अपनी राज्य की सुरक्षा को लेकर कानून व्यवस्था होती है जिसे उनका राज्य का गृह मंत्रालय देखता है। बात करते हैं उत्तराखंड के पुलिस नियमावली की जब से उत्तराखंड राज्य बना तब उत्तराखंड के पुलिस की रीढ़ कहे जाने वाले कांस्टेबलों की 2002 में पहली भर्ती हुई थी, तब से लेकर अब तक जिन कांस्टेबलों ने पुलिस सेवा में अपना योगदान दिया हुआ है वह तब से लेकर अब तक 2021 आ गया है अपने लिए एक प्रमोशनल और ग्रेड पे का इंतजार कर रहे हैं। जबकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में 2000 के बाद से लेकर 2020 तक उनके साथ भर्ती हुए पुलिस कांस्टेबल को तीन-तीन बार प्रमोशन मिल चुका है और वे कोई दरोगा बन चुके हैं तो कोई सी ओ के पद को शोभायमान कर रहे हैं। लेकिन उत्तराखंड सरकार की मेहरबानी कहें या पुलिस के महकमे  के उच्चाधिकारियों के निकम्मे पन की करतूत जो लगातार अपने पुलिस कांस्टेबलों को बंधुआ मजदूर समझ कर उन से काम ले रहे हैं। इन पुलिस कांस्टेबलों को अपने परिवार के साथ कभी-कभी तो तीज त्योहार, सामूहिक पारिवारिक कार्यक्रम तक नहीं निभा पाने का गम होता है, परंतु वाह रे उत्तराखंड सरकार और उसके पुलिस के उच्चाधिकारी अपने ही जवानों का खून पीकर उनका उत्पीड़न कर रहे हैं। देखें क्या है उत्तराखंड की पुलिस की नियमावली की व्यवस्था -  एसआई से लेकर दरोगा, सीओ और कार्यालय के बाबू कर्मचारियों का हर पांच से 7 वर्षों में प्रमोशन हो जाता है साथ ही ग्रेड पे भी बदल जाता है, लेकिन पुलिस कांस्टेबलों का 20 वर्ष बाद भी यह सेवा उपलब्ध नहीं है।

यूपी की तर्ज पर उत्तराखंड की पुलिस व्यवस्था चल रही है लेकिन उत्तराखंड सरकार यूपी की पूरी व्यवस्था भी अपनाने को तैयार नहीं, योगी सरकार ने तो अपने 2012 तक के पुलिसकर्मियों का प्रमोशन कर डाला लेकिन उत्तराखंड सरकार अभी तक मामले को ठंडे बस्ते में लटकाए हुए हैं।

यूपी सरकार ने अपने कांस्टेबलों को उचित सम्मान पदोन्नति दिला कर अपने कानून की रीढ व्यवस्था को मजबूत किया है परंतु उत्तराखंड सरकार ने अपनी रीढ़ व्यवस्था को बंधुआ मजदूर के रूप में इस्तेमाल किया है।

उत्तराखंड को छोड़कर अधिकांश हिंदी भाषी राज्यों की पुलिस व्यवस्था में पदोन्नति की व्यवस्था कांस्टेबल से भर्ती हुए 50% कर्मचारियों में से होती है, उत्तराखंड में यह व्यवस्था शून्य है।

लोक संवाद टुडे की टीम ने राज्य के विभिन्न जिलों और क्षेत्रों में काम कर रहे पुलिस कांस्टेबलों से जब इस संबंध में बात की तो कई कांस्टेबलों की पीड़ा आंसुओं के रूप में छलक उठी। कांस्टेबलों का कहना है कि उन्हें कभी-कभी 24- 24 घंटे तक ड्यूटी भी करनी पड़ जाती है उसके बावजूद भी उनकी सेवा के रूप में उन्हें अपना उत्पीड़न ही देखने को मिल रहा है। उच्चाधिकारियों की  गलती पर भी उन्हीं पर कार्रवाई होती है जबकि पुलिस नियमावली के अनुसार कांस्टेबल से लेकर उच्चाधिकारियों तक दंड व्यवस्था समान है, लेकिन प्रमोशन के नाम पर उनके साथ भारी भेदभाव किया जा रहा है । सूबे के वर्तमान डीजी ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वह पुलिस कांस्टेबल की पीड़ा का समाधान निकालेंगे परंतु अब हमें केवल अंधेरा ही नजर आ रहा है। कई पुलिस कांस्टेबल तो अपनी पीड़ा आक्रोश के रूप में व्यक्त करते नजर आए, उनके अनुसार अगर राज्य सरकार और उनके उच्चाधिकारी उनकी पीड़ा को नहीं समझेंगे तो उनका यह आक्रोश आने वाले चुनाव के समय में सामूहिक स्तीफे का रूप भी ले सकता है। जिसकी पूर्ण जिम्मेदारी पुलिस महकमे के उच्चाधिकारियों और राज्य सरकार की होगी। लोक संवाद टुडे की टीम राज्य की कानून व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी पुलिस पुलिस कांस्टेबलों की पीड़ा को समझ कर उनके साथ है और राज्य सरकार के साथ राज्य सरकार के उच्चाधिकारियों को एक सलाह देती है कि राज्य सरकार और पुलिस के उच्चाधिकारी मिलकर इन पुलिस कांस्टेबलों की पीड़ा को समझें और उनका समुचित हल निकाल कर इसका समाधान शीघ्र करें क्योंकि पुलिस कांस्टेबल फ्रंटलाइन के रूप में हर क्षेत्र में काम करते हैं, ना कि पुलिस के उच्चाधिकारी! और जनप्रतिनिधि! इसलिए पुलिस कांस्टेबलों की पीड़ा का समाधान शीघ्र से शीघ्र होना चाहिए अन्यथा कानून व्यवस्था बिगड़ने में देर नहीं लगेगी। 

मिशन हौसला

कोतवाली कोटद्वार पुलिस का मिशन हौसला  बीमार बुजुर्ग व्यक्ति को दिलाया ऑक्सीजन सिलेन्डर  

कोटद्वार।श्रीमान वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदया जनपद पौड़ी गढ़वाल कु0 पी0 रेणुका देवी  द्वारा कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर के दृष्टिगत समस्त थाना प्रभारियों को अपने-अपने थाना क्षेत्र के अंतर्गत जरूरतमंद लोगों की सहायता करने हेतु निर्देशित किया गया है। जिसमें पुलिस कर्मियों द्वारा कोरोना पॉजिटिव/बीमार व्यक्तियों की मदद की जा रही है। जिसके क्रम मे  आज दिनाँक  12.05-2021 को श्री पंकज पोखरियाल पुत्र नरेंद्र प्रसाद पोखरियाल निवासी गैरेज रोड कोटद्वार ने प्रभारी निरीक्षक कोतवाली कोटद्वार श्री नरेंद्र सिंह बिष्ट को सूचना दी कि मेरे चाचा दिगंबर प्रसाद पोखरियाल की तबीयत बहुत खराब है जिनको सांस लेने में परेशानी हो रही है और जिनका ऑक्सीजन लेवल कम हो रहा है जिन्हें ऑक्सीजन की जरुरत है, सूचना पर  प्रभारी निरीक्षक कोतवाली कोटद्वार द्वारा ऑक्सीजन सिलेण्डर की व्यवस्था कर उक्त बुजुर्ग व्यक्ति को आक्सीजन सिलेंडर दिया गया। उक्त उक्त बुजुर्ग व्यक्ति के परिजनो व स्थानीय जनता द्वारा पुलिस का आभार व्यक्त किया गया। इस समय जनपद पौड़ी पुलिस का प्रत्येक कोरोना वॉरियर जनता की सहायता के लिए सदैव तत्पर है।

 नोट:-जनपद पुलिस द्वारा, श्रीमान DGP महोदय, उत्तराखंड, के उक्त अभियान को सफल बनाने एवं जरुरतमंद एवं असहाय लोगों के प्रति मानवीय व्यवहार रखते हुये उनकी हर सम्भव मदद किये जाने हेतु निरन्तर प्रयास किये जा रहे हैं, जो आगे भी जारी रहेंगे।मिशन हौसला के तहत सहायता हेतु 112 या 9411112702 पर सम्पर्क करे ।




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