सरकार नहीं दिला सकी न्याय तो....! न्यायालय बना अंकिता के लिए आशा की किरण - पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री सुरेन्द्र सिंह नेगी

  सरकार नहीं दिला सकी न्याय तो....! न्यायालय बना अंकिता के लिए आशा की किरण - पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री सुरेन्द्र सिंह नेगी 

  अंकिता के हत्यारों को फांसी की मांग करते विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता 


              पूर्व कैबिनेट मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी 

कोटद्वार । उत्तराखंड में रसूखदार राजनीतिक संरक्षण प्राप्त ऐयाश लोगों को लगभग साढ़े तीन साल ही सही माननीय न्यायालय ने कठोर दण्ड दिलाकर दिखा दिया कि कानून से बढ़कर कोई नहीं। कोटद्वार में डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में मासूम अंकिता  भंडारी को आखिरकार न्याय मिल ही गया। उत्तराखंड की बेटी स्व. अंकिता भंडारी को न्याय दिलाने में जहाँ राज्य सरकार पूरी तरह असफल रही, वहीं माननीय न्यायालय ने एक निष्पक्ष, साहसिक और ऐतिहासिक निर्णय देकर उसके माता-पिता के लंबे संघर्ष को न्याय में परिणत किया है। यह फैसला उस हर पीड़ित नागरिक के लिए आशा की किरण है जो माननीय न्यायालय व्यवस्था से न्याय की अपेक्षा रखता है।"

पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री सुरेंद्र सिंह नेगी ने अदालत के निर्णय पर अपनी गहरी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए माननीय न्यायालय को धन्यवाद दिया और कहा— "सरकार से न्याय की गुहार लगाते हुए अंकिता भंडारी के माता-पिता ने अनगिनत बार अधिकारियों, शासन और न्यायपालिका का दरवाज़ा खटखटाया। उन्होंने हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक जाकर सीबीआई जांच की अपील की। किंतु दुर्भाग्यवश, शासन-प्रशासन ने उनकी पीड़ा को लंबे समय तक अनसुना किया। यदि राज्य सरकार ने संवेदनशीलता और तत्परता दिखाई होती, तो शायद न्याय की राह इतनी लंबी और पीड़ादायक न होती। "न्यायालय का यह निर्णय न केवल अंकिता के माता-पिता की जीत है, बल्कि यह पूरे उत्तराखंड की मातृशक्ति और नारी गरिमा की रक्षा का प्रतीक बन गया है। इस फैसले ने यह सिद्ध कर दिया कि सत्य को चाहे जितना दबाया जाए, वह अंततः न्याय की रोशनी में प्रकट होकर अपनी जगह बना ही लेता है। "यह उत्तराखंड की एक बहादुर बेटी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है, लेकिन हमारी जिम्मेदारी यहीं समाप्त नहीं होती — अब यह आवश्यक हो गया है कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में किसी भी बेटी या बहन के साथ ऐसा अमानवीय और अन्यायपूर्ण कृत्य न हो। यह केवल कानून व्यवस्था का प्रश्न नहीं, बल्कि हमारी सामाजिक चेतना, प्रशासनिक जवाबदेही और नैतिक संवेदना की अग्निपरीक्षा है। अंकिता हत्याकांड पर न्याय व्यवस्था पर बोलते हुए पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि "जिस प्रकार से यह निर्मम अपराध हुआ, वह समाज और मानवता दोनों को शर्मसार करता है। यह कोई सामान्य हत्या नहीं थी, बल्कि  अमानवीयता की पराकाष्ठा थी। वास्तव में, दोषी इस कृत्य के लिए उससे भी कठोर सजा के योग्य थे। किंतु न्यायालय ने जिस प्रकार तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया — वह इस देश की न्यायपालिका की दृढ़ता और निष्ठा का प्रमाण है। यह फैसला राज्य सरकार के लिए भी एक स्पष्ट संदेश है कि न्याय को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति अब स्वीकार नहीं की जाएगी।"

अंत में नेगी ने सरकार से यह मांग रखी—

 "अब समय आ गया है कि बेटियों की सुरक्षा केवल भाषणों और नारों तक सीमित न रहे, बल्कि ज़मीन पर ठोस और प्रभावी कार्यवाही के रूप में दिखाई दे। इस फैसले से सबक लेते हुए राज्य सरकार को चाहिए कि वह महिलाओं की सुरक्षा, न्याय की पहुंच और पीड़ितों के सम्मान को सर्वोच्च प्राथमिकता दे।"



 

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