आंदोलन प्रदेश उत्तराखंड, जहां आंदोलन के बिना जनसमस्याएं बेबस
कोटद्वार/देहरादून/ऋषिकेश/चौखुटिया। प्रणाम,पैलागुन, नमस्कार,जय श्री उत्तराखंड। मित्रों आपको मेरा यह प्रारम्भिक संदर्भ कुछ अटपटा तो अवश्य लगा होगा....! मेरा यह संंदर्भ आलेख उत्तराखंड की उस सोई हुई जनता को है जो राज्य बनने के रजत जयंती समारोह की तैयारी में या कहें खुशहाली को लेकर है।
मित्रों में उत्तराखंड की पिछली उत्तराखंड सरकार की 24 साल की उपलब्धियों से रूबरू करने की कुछ कोशिश कर रहा हूं,आप अपनी प्रतिक्रियाओं चाहे वह सकारात्मक हों या नकारात्मक कमेंट के माध्यम से बता सकते हैं। मित्रों उत्तराखंड युवा राज्य है लेकिन युवा जैसी ऊर्जा राज्य में देखने को नहीं मिल रही।
मित्रों अक्टूबर का माह देश की ढेरों महान हस्तियों की अवतरण और शहादत का महिना रहा है,इस माह में भारत के आयरन मैन सरदार पटेल,किरन लेडी इंदिरा गांधी जैसी प्रतिभाओं का योगदान रहा है। वहीं उत्तराखंड राज्य बनाने के लिए उत्तराखंड आंदोलनकारियों की शहादत नहीं बुलाई जा सकती।
वर्तमान में राज्य सरकार की बहुत सारी लापरवाहियों, अनदेखी और राजनीतिक स्वार्थ के चलते बहुत सारे आंदोलन सक्रिय हुए हैं। जिनमें कोटद्वार में स्वतंत्र पत्रकार के नेतृत्व में चलाया जा रहा लालढांग चिल्लरखाल कोटद्वार रामनगर मोटर मार्ग, ऋषिकेश में अजेन्ददर कंडारी हत्याकांड,और चौखुटिया ( अल्मोड़ा) में चल रहा स्वास्थ्य मिशन आंदोलन बता रहा है कि न तो उत्तराखंड में कानून व्यवस्था दुरूस्त है न सरकारी मिशनरी अर्थात राज्य हित में निर्णय लेने वाली सरकार और न ही आम जरुरत की स्वास्थ्य सेवाएं।
उपरोक्त आंदोलनों के अतिरिक्त कर्मचारियों की मांगों के आंदोलन, किसानों के आंदोलन व राज्य सरकार की ब्योरोक्रेसी की बेलागाम कार्यप्रणाली उत्तराखंड की भोली-भाली जनता को राशन नहीं आ रही। राज्य बनने के बाद पिछले 24 वर्षों में उत्तराखंड में राज्य की आम जनता के हित में कोई सार्वजनिक उपलब्धियां राज्य को मिली। दो-दो राष्ट्रीय दलों के नेतृत्व के बाद राज्य को मिला है तो केवल आंदोलन.....!
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